अमन सिंह। सिंगरौली
सिंगरौली से एक बार फिर ऐसा दृश्य सामने आया है, जो व्यवस्था की संवेदनहीनता और प्रशासनिक उदासीनता पर करारा तमाचा है। मुड़वानी डैम के पास कोयले से लदा एक ट्रेलर पलट गया। गनीमत रही कि इस हादसे में कोई जनहानि नहीं हुई, लेकिन यह राहत स्थायी नहीं कही जा सकती—क्योंकि यही स्थान कुछ दिन पहले दो निर्दोष लोगों की जान ले चुका है।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब मौतें हो चुकी थीं और चेतावनी मिल चुकी थी, तब भी सुधार के नाम पर आखिर किया क्या गया? न सड़क की हालत सुधारी गई, न भारी वाहनों की आवाजाही पर कोई ठोस नियंत्रण लगाया गया और न ही सुरक्षा संकेतक या चेतावनी बोर्ड लगाए गए। नतीजा वही—वही जगह, वही लापरवाही और वही हादसा।
अब मुड़वानी डैम मार्ग केवल एक सड़क नहीं, बल्कि प्रशासनिक विफलता का जीवंत उदाहरण बन चुका है। कोयला परिवहन में लगे भारी वाहन, ओवरलोडिंग, तेज रफ्तार और बदहाल सड़कें—ये सभी मिलकर यहां हर दिन एक नए हादसे की पटकथा लिख रहे हैं।
यह सवाल भी उतना ही गंभीर है कि क्या दो मौतें भी सिस्टम को जगाने के लिए काफी नहीं थीं? क्या प्रशासन किसी और बड़े और घातक हादसे का इंतजार कर रहा है? स्थानीय लोगों की शिकायतें और आशंकाएं लगातार अनसुनी की जा रही हैं, जिससे क्षेत्र में जन आक्रोश बढ़ना स्वाभाविक हो गया है।
यह घटना सिर्फ एक ट्रेलर के पलटने की खबर नहीं है, बल्कि उस लापरवाह व्यवस्था का आईना है, जो हादसों के बाद भी नहीं सुधरती। अगर अब भी मुड़वानी डैम क्षेत्र में सड़क सुधार, यातायात नियंत्रण और कोयला परिवहन की सख्त निगरानी नहीं की गई, तो अगली खबर और भी भयावह हो सकती है।
अब वक्त हादसों पर केवल अफसोस जताने का नहीं, बल्कि जिम्मेदारी तय करने और ठोस कार्रवाई का है—वरना मुड़वानी डैम यूं ही सिंगरौली का ‘मौत का मोड़’ बना रहेगा।





