मैहर। अनिल कुशवाहा।
धार्मिक आस्था, संस्कार और पवित्र अनुष्ठानों के नाम पर की जा रही कथित मनमानी वसूली एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है। इस बार मामला प्रयागराज का है, जहाँ एक गरीब परिवार ने स्थानीय पंडों पर भावनात्मक दबाव बनाकर दान के नाम पर वसूली का गंभीर आरोप लगाया है। मामले को DSP संतोष पटेल ने भी सोशल मीडिया पर साझा कर अपनी गहरी आपत्ति दर्ज कराई है।
गरीब परिवार की व्यथा—“आत्मा को शांति नहीं मिलेगी” कहकर वसूले 2500 रुपये और 1 क्विंटल गेहूँ
परिवार के अनुसार वे अपनी दिवंगत बुजुर्ग महिला की अस्थियाँ लेकर प्रयागराज पहुँचे थे, जहाँ पंडों ने संस्कारों के नाम पर 2500 रुपये नगद और लगभग एक क्विंटल गेहूँ दान के लिए दबाव डाला।
परिजनों का कहना है कि—
> “हमारी आर्थिक हालत बहुत कमजोर है, इलाज और अस्पताल ले जाने तक के लिए पैसे नहीं थे, फिर भी ‘आत्मा भटकेगी’ कहकर हमें मजबूर किया गया।”
करीबी रिश्तेदारों ने साफ किया कि बुजुर्ग महिला किसी गंभीर बीमारी से नहीं जूझ रहीं थीं, प्लेटलेट्स कम होने की वजह से उनका निधन हुआ।
भावनात्मक शोषण पर उठे सवाल—“धर्म नहीं, मजबूरी को बनाया गया हथियार”
स्थानीय लोग और सामाजिक कार्यकर्ता इस घटना को गरीब परिवारों के साथ संस्कारों के नाम पर संवेदनहीन आर्थिक शोषण बता रहे हैं। उनका कहना है कि इस तरह की घटनाएँ धार्मिक विश्वास को ठेस पहुँचाती हैं।
DSP संतोष पटेल की प्रतिक्रिया—“दान स्वेच्छा पर हो, डर दिखाकर नहीं”
DSP संतोष पटेल ने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा—
> “धर्म और संस्कार सम्मान के विषय हैं, पर दान व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर होना चाहिए। भावनात्मक दबाव डालकर गरीब परिवारों से वसूली करना निंदनीय है।”
DSP का यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, और लोग प्रशासन से सख्त कदम उठाने की मांग कर रहे हैं।
– प्रशासन से तीन बड़ी मांगें
1. अनुष्ठानों की मानक फीस तय की जाए
2. दान पूरी तरह स्वैच्छिक हो, अनिवार्य नहीं
3. भावनात्मक डर दिखाकर वसूली करने वालों पर सख्त कार्रवाई हो
आस्था बनी रहे, पर शोषण नहीं—लोगों की साफ राय
लोगों ने कहा कि वे 16 संस्कारों और धार्मिक परंपराओं में पूरी आस्था रखते हैं, लेकिन धार्मिक आस्था को कारोबार बना देना समाज के लिए खतरनाक है।
प्रयागराज समेत कई तीर्थस्थलों पर इस प्रकार की घटनाएँ लगातार सामने आती रही हैं, जिन पर अब प्रशासनिक हस्तक्षेप की मांग ज़ोर पकड़ रही है।






