अमन सिंह
सिंगरौली जिले के चितरंगी परियोजना के मौहरिया आंगनवाड़ी केंद्र में कार्यकर्ता अनसुईया द्विवेदी के विरुद्ध फर्जी मार्कशीट लगाने का गंभीर आरोप एक बार फिर सुर्खियों में है। शिकायतकर्ता व्यंकटेश्वर द्विवेदी का दावा है कि अनसुईया ने नौकरी प्राप्त करने के लिए बरका विद्यालय की अंकसूची प्रस्तुत की थी, लेकिन विद्यालय प्रबंधन ने स्पष्ट कर दिया है कि उनके यहां इस नाम की कोई छात्रा पंजीकृत नहीं रही। यह बयान पूरे चयन तंत्र की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
पहले हटाया, फिर बहाल—क्या है खेल?
सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि पूर्व में इसी शिकायत के आधार पर विभाग ने अनसुईया द्विवेदी को पद से पृथक कर दिया था। यदि दस्तावेज फर्जी पाए गए और कार्रवाई भी हो चुकी, तो आखिर किन परिस्थितियों में उनकी सेवा पुनः बहाल कर दी गई? क्या विभागीय स्तर पर दबाव बना, या आंतरिक प्रक्रियाओं में कहीं न कहीं ढील बरती गई? जवाबदेही का यह अभाव व्यवस्था की पारदर्शिता को कमजोर करता है और यह सवाल उठाता है कि क्या आंगनवाड़ी भर्ती प्रक्रिया वास्तव में निष्पक्ष है?
निष्पक्ष जांच की मांग
शिकायतकर्ता व्यंकटेश्वर द्विवेदी ने मामले की पुनः स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की मांग की है। उनका कहना है कि जब विद्यालय स्वयं इस मार्कशीट को फर्जी बता रहा है, तो विभाग का दायित्व है कि वह तथ्यों को स्पष्ट करे और दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई सुनिश्चित करे।
यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की नियुक्ति तक सीमित नहीं है; यह पूरे सिस्टम की नैतिकता और विश्वसनीयता का प्रश्न है। यदि तथ्यों को दरकिनार कर पुनः बहाली की गई है, तो प्रदेशभर में चल रही “करप्शन फ्री नियुक्ति” की अवधारणा सवालों के घेरे में आ जाती है।
प्रशासन की अगली कार्रवाई पर टिकी निगाहें
अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि जिला प्रशासन इस मामले को कितनी गंभीरता से लेता है। क्या एक बार फिर फाइलों में लीपापोती होगी या इस बार जांच की आंच जिम्मेदार पदाधिकारियों तक भी पहुंचेगी?
आंगनवाड़ी जैसी सेवाएँ समाज के सबसे निचले वर्ग तक पोषण, स्वास्थ्य और शिक्षा की बुनियादी सुविधाएँ पहुँचाने का आधार हैं। ऐसे में फर्जी दस्तावेजों के सहारे की गई नियुक्तियाँ न केवल कानून का अपमान हैं, बल्कि लाखों बच्चों और माताओं के अधिकारों के साथ भी छल हैं।मामला गंभीर है—और इससे भी अधिक गंभीर है जिम्मेदारों की चुप्पी।






